Sunday, December 9

पागल सा बनाया है














दिल के धरकन को बढाती है धीरे से सहमे से .. चुपके से आ जाती है वो
         शरमाती है वो घबराती है वो ...फिर भी न जाने  क्यों पास आती है वो .....
   उसकी आँखों में है वो ..जो सारे मैखाने  में है जो
           सम्मा के लिए जलती है वो ...परवाने के लिए बुझती है वो .....
    दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक देकर जाती है
                 हर सख्स की निगाह में फिदरत सी दे  जाती है ........
है कोई बैचैन  .....तो  कोई घबराया सा ...तो कोई है मायूस 
     सबको उसने नचाया है ....
        अपने ही जाल में फसाया है
अपने भोली से सूरत से न जाने कितनो को ....पागल सा बनाया है