Sunday, December 9

पागल सा बनाया है














दिल के धरकन को बढाती है धीरे से सहमे से .. चुपके से आ जाती है वो
         शरमाती है वो घबराती है वो ...फिर भी न जाने  क्यों पास आती है वो .....
   उसकी आँखों में है वो ..जो सारे मैखाने  में है जो
           सम्मा के लिए जलती है वो ...परवाने के लिए बुझती है वो .....
    दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक देकर जाती है
                 हर सख्स की निगाह में फिदरत सी दे  जाती है ........
है कोई बैचैन  .....तो  कोई घबराया सा ...तो कोई है मायूस 
     सबको उसने नचाया है ....
        अपने ही जाल में फसाया है
अपने भोली से सूरत से न जाने कितनो को ....पागल सा बनाया है

Friday, September 14

"ये दिल ही था दीवाना "







ज़माने भर की कसमे खायी है
       फिर भी हमने रशमो को निभाई है ........
साथ रहना है हमें दूर जाना नहीं
            दूर रह के भी पास  रहना है मुझे ......
शायद ये दिल ही था दीवाना
            जिसको भी हमने चाहा......उसने हम को  न जाना .......
शायद ये  है खुदाई  या गम की जुदाई
     जिस तरफ  भी  चले है भवर में फसे है
समुन्दर की लहरों पे खुद को ले के चले है ........
"  लाइफ बोट " की आशा में खुद को लेकर बढ़ते चले है
           मगर वो न आई और न ही लाइफ बोट लेकर आयी
और जब भी आयी एक सुनामी लेकर आयी
       हर तरफ एक सन्नाटा .....एक खामोसी देने को आयी ...........

Friday, July 20

याद आती है.....


दिन ढल जाने के बाद .......हर कुछ खो जाने के बाद
          दिल की तन्हिई  से तेरी याद आती है.....
 
हर वो लम्हा .......हर वो पल .....हर वो घरी...
               जो बिताये तेरा साथ .......
पल
- पल तेरे साये की तरह याद आती है ......

तेरे साथ वो पहली मुलाकात ........
        वो तेरा मुस्कुराता चेहरा ........
हर
वो बिताये लम्हे साथ
में ....
     रह - रह के याद आती है...........

तेरा वो दूर से मुस्कुराना .........
       पास आकर हाई बोलना .......वो चमच से खिलाना ....
जाते
हूवे  बाय बोलना ......
                सब कुछ याद  आता है ..............

है
ये एकी मुझे अपने पर

     जो याद इधर आती है .....वो उधर भी आती होगी........
है
ये दिल की बैचैनी ही सही.....मगर उसे  याद दिलाती तो होगी ....
 
लेकिन ये सारी बाते दिल की बाते है.....
     ये दिल ही जाने .....या वो दिलरुबा जाने ....
मगर
याद  तो आती है....

सपने में सही .....हकीकत में सही .....
   जाने - अनजाने में सही ....
ना
जाने वो कब - कब याद आती है.....

ये है उसका प्यार या दीवना-पन .....
या
और ही कुछ........
     जुदा होके भी वो " मिस बेवफा
याद आती है....

Saturday, January 7

सिसक-सिसक कर

सिसक-सिसक कर
सिसक-सिसक कर
सिसक -सिसक कर जीते है, सिसक -सिसक कर  मरते है
         फिर भी है ये सोच की हम दूसरो का लिए जीते है .........
है ये चाँद का सूनापन या है रात का अकेलापन
       या फिर है तारो का सनाटापन
अमावस्या से पूर्णिमा तक के जिंदगी को हमने देखा है ....


अन्ना से लेकर लोकपाल को हमने देखा है
          सोच किसी का और वाह-वाह  किसी को
          जिंदगी की इस उलटफेर को हमने बरे ही गौर से देखा है ....
 

जब नग्न बदन ,बच्चा कोई रोटी को रोता है
                माँ कहती थोरी देर सब्र कर ले
       क्यों की वो थोरी ही देर में रो-रो कर मातृभूमि पर सोता है .....
 

है ये गरीबी या है ये पुरस्कार
    जिसको हम देने चले है या  लेने चले है .......
 

लेकिन अंत तो कुछ यू ही हुआ ......
              सिसक-सिसक कर मरते रहे
अपनी पहचान के लिए भटकते रहे ............
 

Wednesday, January 4

ये चीज है ऐसी

ज़माने को हमने जलाया ,अपने को भी ठुकराया
ये क्या चीज है जिसको हमने होठो से लगाया ..


सब पुचते है ,ये चीज क्या है
हम कहते है भुझो तो जानो ,पियो तो जानो ....


है ये सबब ये मेरी जरुरत
मै कहता हु ,है ये बरी ही खुबसूरत ......

आग से हमने खेला है ,बरी ही मुश्किलों को झेला है
येही है जिसको हमने अपने दिल से टटोला है ......


प्यासों को पिलाया ,गिरते को उठाया ...उठतो को गिराया
ये चीज है ऐसी जिसको सबने आजमाया .......


सोचता हु ,ये दुहाई है या दिल की गहरियी है
लकिन ये दिल की आवाज़ है
पीता हु पीने के लिए ...जीता हु जीने के लिए .....