Monday, December 26

सफर


जब चले है तो चले है ...सफर मे चले है,
है मुकिन नहीं ये आस्हा नहीं ,
फिर
भी कांटे भरे राह़ू पर चले है हम .....
हो फूलू का सेज ,या कांटो का पत्थर ,
सभी पर है चलना और जक्मों को है सहना .....
सायद यही है रास्ता और यही है मिटटी ,
जो ले जाती है मुझको यू ही अपनी ओर
जब चले है तो चले है ...सफर मे चले है................

वो सुनसान राहें अकेला सफ़र ,
हँसती जिंदगी तनहा सफ़र
.........
हमने भी पाया तुमने भी पाया ,
लेकिन जिस पर चले है वो मंजिल को पाया
.............
यही है हकीकत यही है फसाना,
न समझो इसको ये है बेगाना............
जब चले है तो चले है ...सफर मे चले है......

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