बचपन से ये आश है, हो सब कुछ मेरे पास 
           मगर न जाने क्यों इन दिनों जिंदगी फिर भी है उदास 
है ये आश ,उसमे हो कुछ न कुछ ख़ास 
            मगर न जाने क्यों दिल में अभी भी है एक बात 
बीतते समय के साथ चलता है ये आश 
          मगर न जाने क्यों आधे रास्ते में ही छूट जाता है ये आश  
अकेला नहीं है ये आश ,जुड़ा है सभी के दिलो में ये आश 
              किसी न किसी से ,मगर सभी को है ये आश 
जोरता है ये आश तो तोरता है ये आश 
            सब कुछ बिखर जाता है अगर मुँह मोरता है ये आश
मानव तो मानव ,धरती से लेकर आकाश की भी है एक आश 
                        ......... कब होगी मेरी पूरी ये आश
मगर आश की कोई उम्र नहीं होती ये तो अमर है 
                       मगर न तो मैं अमर हु न मेरी आश
                                                            " राज "

 
 





