Saturday, May 11

मधुप्याला


पीता हु मै, जीता हु, छूता हु मै
        आंखो से दिल तक छूता हु मै
टूटा हु, छूता हु, मगर दिल से पीता हु
    जरा पास आकार देखो किसके लिए जीता हु
शाम हुई है दिन भी ढला है
        डूबते सूरज के साथ फिर से चला है
भर दो इसको शुरू कर दो इसको
    हर कसमों वादो को चकनाचूर कर दो फिर से
मजहब नहीं है कोई दुश्मन नहीं है कोई
     जब बैठता हु मैखाने मे हर कोई हमदर्द है
कर दो खत्म, भर दो सितम
       आखरी बूंद बची है, रंग लो जतन
पीता हु मै, जीता हु मै
      मगर फिर भी जाने क्यूँ जीता हु मै.......

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